आज कुछ लिखा नहीं बस पढ़ा हूँ
किसी किताब को नहीं तुम्हें पढ़ा हूँ
इस उम्मीद में कि एक दिन
तुम भी पढ़ोगे मुझे और समझ पाओगे
मेरी कविता को नहीं, मुझे बस मुझे
क्योंकि मैंने सुना है
तुम्हें पढ़ना अच्छा लगता है
एक दफ़ा कोशिश करना मुझे पढ़ने की
फिर रख लेना सहेजकर
अपने किसी पंसदीदा किताब की तरह
ताउम्र अपने साथ।
तुम मुझे पढ़ोगे न?
लेखक: Manish Kumar