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असाधारण नीरा आर्य
समर्पित है सम्पूर्ण जीवन मां भारती की सेवा में,
आत्मसम्मान तक चढ़ा दाव पर राष्ट्र ध्वज की रक्षा में।
भारत वर्षों की गुलामी की जंजीरों से 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ,हम भाग्यशाली है की हमारा जन्म संस्कृतियों, सभ्यताओं,परंपराओं आदि से परिपूर्ण महान भारत देश में हुआ।
भारत जिस पर कभी अंग्रेज़ी हुकूमत इस तरह से हावी थी जिससे पार पाना असम्भव सा प्रतीत हो रहा था लेकिन इस गुलामी से निपटने और आजादी के जीत का पताका फहराने की जिम्मेदारी कई वीरों, वीरांगनाओं ने अपने ऊपर लिया और आखिरकार फलस्वरूप हमें आजादी मिली।
भारत आजाद हुआ,आज हम सभी इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं और आजादी के लिए संघर्ष करने वाले कुछ चुनिंदा शहीदों व वीरों को हीं पढ़ पाते हैं,कई ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी भी हैं जिनके नाम तक हमें नहीं मालूम हैं कारण जो कुछ भी हो।
देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने में अपनी अहम योगदान देने वाली ऐसी हीं एक स्वतंत्रता सेनानी थीं “नीरा आर्य”, जिनके विषय में हमने कम सुना है,या मुझे विश्वास है कई लोगों ने नहीं भी पढ़ा या सुना होगा।
“नीरा आर्य” एक सशक्त,कर्मठ,कर्तव्यनिष्ठ,महान,अद्वितीय असाधारण,समर्पित,देशप्रेमी,कर्मों से अविस्मरणीय और स्त्रियों के लिए मिशाल हैं।उनके रुधिर में आग का प्रवाह होता था उनकी लालसा अंग्रेजों के शोनित पान करने की थी।
“नीर आर्य” का जन्म 5 मार्च 1902 को संयुक्त प्रांत के खेकड़ा नगर में हुआ जो वर्तमान में भारत के उत्तरप्रदेश राज्य में बागपत जिले का एक शहर है,उनके पिता सेठ “छज्जूमल” जो एक संपन्न और प्रतिष्ठित व्यापारी थे।नीर आर्य की प्रारंभिक शिक्षा कलकत्ता के भगवानपुर ग्राम में हुई,आर्य के प्रारंभिक शिक्षक थे “बनी घोष” जिनसे उनको संस्कृत की शिक्षा प्राप्त हुई।आर्य अपने बाल्यावस्था में बहुत मेधावी थीं और इन्हें काफी भाषाओं का ज्ञान भी था।
एक समृद्ध परिवार में जन्मी लड़की के अंदर देशप्रेम का ज्वाल प्रस्फुटित हो उठा था,देश के लिए कुछ करने का जज़्बा पल्लवित हो चुका था।”निरा नागिन” ने ठाना की वो “आज़ाद हिंद फ़ौज” से जुड़ेंगी और देश की सेवा करेंगी। “आजाद हिंद फौज” जो नेताजी के नेतृत्व में उन दिनों देश की सेवा में निरंतरता से कार्य कर रहा था।
परिणामस्वरूप “नीरा नागिन” आजाज हिंद फौज की सदस्य बन गई और देशहित में कार्य करना प्रारंभ कर दिया। “नीर आर्य” को “आजाद हिंद फौज” का प्रथम जासूस होने का गौरव भी प्राप्त है।जासूस का कार्य था अंग्रेजी ताकतों के षड्यंत्रों,जानकारियों,कूटनीतियों को जानना,समझना अपने साथियों के साथ चर्चा करना और अंत में नेताजी को बताना।एक बार “नीरा नागिन” सहित उनकी सहेलियां लड़के के वस्त्र ओ’ वेश में जानकारियां इकट्ठा कर रही थीं की उसी क्रम में उनकी एक सहेली राजमणि को गिरफ्तार कर लिया गया,तब आर्या और दुर्गा ने सोचा की हमें हमारी सहेलियों को बचाना है और वो उन्हें बचाने में कामयाब भी हो जाती हैं परंतु जो सिपाही पहरे पर थे,उनमें से एक की बंदूक से निकली गोली राजामणि की दाई टांग में धंस गई,खून का फव्वारा छूटा। किसी तरह लंगडाती हुई वो आर्या और दुर्गा के साथ एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ गई। नीचे सर्च ऑपरेशन चलता रहा, जिसकी वजह से तीन दिन तक उन्हें पेड़ पर ही भूखे-प्यासे रहना पड़ा। तीन दिन बाद ही वे हिम्मत की और सकुशल अपनी साथी के साथ आजाद हिंद फौज के बेस पर लौट आईं। तीन दिन तक टांग में रही गोली ने राजमणि को हमेशा के लिए लंगड़ाहट बख्श दी। राजामणि की इस बहादुरी से नेताजी बहुत खुश हुए और उन्हें आईएनए की रानी झांसी ब्रिगेड में लेफ्टिनेंट का पद दिया और मैं कैप्टन बना दी गई। जासूसों को आदेश था जब वे पकड़े जाएं उन्हें खुद को गली मार लेनी है।उसी फौज में स्वतंत्रता सेनानी के रूप में “नीरज आर्य” के भाई बसंत कुमार भी थे।
बीतते दिनों के साथ “नीरा आर्य” की शादी श्रीकांत जयरंजन,जो ब्रिटिश भारत में सीआईडी इंस्पेक्टर के रूप में कार्यरत थे,से तय कर सी गई।”श्रीकांत” को “नेताजी सुभाष चंद्र बोस” की जासूसी और जान से मारने की जिम्मेदारी दी गई थी,श्रीकांत ने एक बार प्रयास किया और नेताजी पर गोली भी चलाई परंतु वह गोली नेताजी के ड्राइवर को जा लगी। श्रीकांत को इस अक्षम्य अपराध के लिए उसकी पत्नी नीरज आर्य ने उसे चाकू घोंप कर मौत के घाट उतार दिया,इसी कारण से नेताजी ने “नीर आर्य” को “नागिन” नाम दे दिया।
पति की हत्या करने के आरोप की वजह से नीरा नागिन को काले पानी की सजा सुना दी गई।निरा नागिन अपने जीवन में घटित घटनाओं का उल्लेख लेखिका फरहाना ताज के समक्ष करती हैं।उनकी आत्मकथा का एक हृदयविदारक अंश उनकी द्वारा कथित, ‘‘मुझे गिरफ्तार करने के बाद पहले कलकत्ता जेल में भेजा गया। यह घटना कलकत्ता जेल की है, जहां हमारे रहने का स्थान वे ही कोठरियाँ थीं, जिनमें अन्य महिला राजनैतिक अपराधी रही थी अथवा रहती थी। हमें रात के 10 बजे कोठरियों में बंद कर दिया गया और चटाई, कंबल आदि का नाम भी नहीं सुनाई पड़ा।मन में चिंता होती थी कि जहां हमें भेजा जाना था, वहां गहरे समुद्र में अज्ञात द्वीप में रहते स्वतंत्रता कैसे मिलेगी, अभी तो ओढ़ने बिछाने का ध्यान छोड़ने की आवश्यकता आ पड़ी है? जैसे-तैसे जमीन पर ही लोट लगाई और नींद भी आ गई। लगभग 12 बजे एक पहरेदार दो कम्बल लेकर आया और बिना बोले-चाले ही ऊपर फेंककर चला गया। कंबलों का गिरना और नींद का टूटना भी एक साथ ही हुआ। बुरा तो लगा, परंतु कंबलों को पाकर संतोष भी आ ही गया। अब केवल वही एक लोहे के बंधन का कष्ट और रह-रहकर भारत माता से जुदा होने का ध्यान साथ में था।‘‘सूर्य निकलते ही मुझको खिचड़ी मिली और लुहार भी आ गया। हाथ की सांकल काटते समय थोड़ा-सा चमड़ा भी काटा, परंतु पैरों में से आड़ी बेड़ी काटते समय, केवल दो-तीन बार हथौड़ी से पैरों की हड्डी को जाँचा कि कितनी पुष्ट है। मैंने एक बार दुःखी होकर कहा, ‘‘क्याअंधा है, जो पैर में मारता है?’’।‘‘पैर क्या हम तो दिल में भी मार देंगे, क्या कर लोगी?’’ उसने मुझे कहा था। ‘‘बंधन में हूँ तुम्हारे कर भी क्या सकती हूँ…’’ फिर मैंने उनके ऊपर थूक दिया था, ‘‘औरतों की इज्जत करना सीखो?’’ जेलर भी साथ थे, तो उसने कड़क आवाज में कहा, ‘‘तुम्हें छोड़ दिया जाएगा, यदि तुम बता दोगी कि तुम्हारे नेताजी सुभाष कहाँ हैं?’’।‘‘वे तो हवाई दुर्घटना में चल बसे, ’’ मैंने जवाब दिया, ‘‘सारी दुनिया जानती है। ’’ ‘‘नेताजी जिंदा हैं….झूठ बोलती हो तुम कि वे हवाई दुर्घटना में मर गए?’’ जेलर ने कहा। ‘‘हाँ नेताजी जिंदा हैं।”।”तो कहाँ हैं…। ’’ ‘मेरे दिल में जिंदा हैं वे। ’’
जैसे ही मैंने कहा तो जेलर को गुस्सा आ गया था और बोले, ‘‘तो तुम्हारे दिल से हम नेताजी को निकाल देंगे। ’’ और फिर उन्होंने मेरे आँचल पर ही हाथ डाल दिया और मेरी आँगी को फाड़ते हुए फिर लुहार की ओर संकेत किया…लुहार ने एक बड़ा सा जंबूड़ औजार जैसा फुलवारी में इधर-उधर बढ़ी हुई पत्तियाँ काटने के काम आता है, उस ब्रेस्ट रिपर को उठा लिया और मेरे दाएँ स्तन को उसमें दबाकर काटने चला था…लेकिन उसमें धार नहीं थी, ठूँठा था और उरोजों (स्तनों) को दबाकर असहनीय पीड़ा देते हुए दूसरी तरफ से जेलर ने मेरी गर्दन पकड़ते हुए कहा, ‘‘अगर फिर जबान लड़ाई तो तुम्हारे ये दोनों गुब्बारे छाती से अलग कर दिए जाएँगे…’’ उसने फिर चिमटानुमा हथियार मेरी नाक पर मारते हुए कहा, ‘‘शुक्र मानो हमारी महारानी विक्टोरिया का कि इसे आग से नहीं तपाया, आग से तपाया होता तो तुम्हारे दोनों स्तन पूरी तरह उखड़ जाते।’’
1947 में जब देश आजाद हुआ हमने ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों को भूलना प्रारंभ कर दिया,इनके भाई वसंत कुमार सन्यासी हो गए और आजाद देश में “नीर आर्य” फूल बेचकर जीवन यापन करने लगीं,वो हैदराबाद की एक झोपड़ी में रहने लगीं जिसके सरकारी जमीन पर में रहने के कारण तोड़ दिया गया,चिंतन करने जैसा है जिन्होंने आजादी के संघर्ष में इतनी यातनाएं सहीं उन्हें आजादी के बाद भी ऐसे रहना पर रहा था।
गरीबी,निराश्रित,लाचारी,बेबसी,वृद्धावस्था,की हालत में उन्होंने अपनी अंतिम सांस चारमीनार के निकट उस्मानिया में 26 जुलाई 1998 को ली।उनका अंतिम संस्कार हिंदी दैनिक स्वतंत्र वाती के पत्रकार तेजपाल सिंह धामी ने अपने साथियों के साथ किया।
आज भी उनके जीवन से जुड़े कई चीजें यूं कहें तो काफी चीजें हैदराबाद में उनके एक स्मारक बनने का इंतजार कर रहा है।
ऐसी से महान कर्मठ महिला स्वतंत्रता सेनानी को मेरा शत् नमन,ऐसे कई स्वतंत्रता सेनानी हैं जिनके विषय में हमें ज्ञान नहीं,लेकिन हम जान जरूर सकते हैं जब हमारे अंदर इच्छाशक्ति होगी।
प्रजापति झा,
देशबन्धु महाविद्यालय
(दिल्ली विश्वविद्यालय)
द्वितीय वर्ष
संस्कृत ऑनर्स
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