हिंदी दिवस विशेष: बदलती परिस्थितियों के साथ अपने अस्तित्व को समेटती हुई भाषा

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हिंदी दिवस विशेष: बदलती परिस्थितियों के साथ अपने अस्तित्व को समेटती हुई भाषा

हिंदी दिवस विशेष: 2021 में हिंदी की स्थिति

हिंदी दिवस विशेष: भाषा का हमारे जीवन में जो स्थान है, उससे हर कोई परिचित है। मानव जाति के लिए भाषा युग का सबसे बड़ा वरदान है। अपने अंतर्मन में उतपन्न हुए विचारों को सबके समक्ष रखने हेतु भाषा एक उन्नत माध्यम प्रदान करती है। आदि काल से ही समय-समय पर नई-नई भाषाओं की शुरुआत हुई और देखते ही देखते यह भाषाएं मानवीय समाज का एक अभिन्न अंग बन गईं। इसमें भारतीय समाज के उत्थान की परिचायक हिंदी भाषा के योगदान को स्मरण करने का दिवस है। हिंदी ने कालांतर से ही न केवल अपने रुप को उन्नत किया, अपितु इस भाषा ने एक सभ्य, संबल और सार्थक भारतीय समाज के निर्माण में अपनी शत प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित की।

हिंदी दिवस विशेष: भारतीय समाज में हिंदी का स्थान

हिंदी दिवस विशेष: इसमें किंचित भी संदेह नहीं कि एक भाषा के रूप में हिंदी हम भारतीयों की सबसे बड़ी पहचान है। इसके साथ ही, यह भाषा हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, और परिचायक भी है। हिंदी विश्व की सबसे सरलतम, सहज एवं सुगम भाषा होने के साथ विश्व की संभवतः सबसे वैज्ञानिक भाषा है। संसार में हिंदी का अध्ययन कर इसे समझने, बोलने और चाहने वाले लोग बहुत बड़ी संख्या में उपस्थित हैं। यदि हम आंकड़ो की बात करें तो मंदारिन एवं अंग्रेजी के बाद, हिंदी विश्व में तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।

भारत में यदि हम हिंदी भाषा की स्थिति की बात करें तो यह कुल ग्यारह राज्यों एवं तीन केंद्रशासित प्रदेशों की मुख्य राजभाषा है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल आबादी में से लगभग 41.03 प्रतिशत लोगों की मातृभाषा हिंदी है।

हिंदी दिवस विशेष: आंकड़ो से हम हिंदी भाषा के महत्व को समझ ही सकते हैं, परन्तु इसकी प्रासंगिकता को वृहद स्तर पर समझने हेतु हम भारतीय समाज के इतिहास की ओर यदि रूख करें तो तथ्य और भी अधिक रुप से स्पष्ट होंगे। लगभग एक हज़ार वर्ष पुरानी इस भाषा का उत्थान विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा संस्कृत से हुआ। इसने सदैव समय तथा सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार अपने निर्माण को गति प्रदन की। साहित्य जगत में हिंदी ने अपने दो मूल स्वरूपों के सृजन का अनुसरण किया।

भारतेंदु हरिश्चंद्र के साहित्यिक युग में भाषा ने अपने ब्रज स्वरूप के माध्यम से लोगों के समक्ष लोकप्रियता हासिल की। जैसे-जैसे समय बीता और भाषा ने द्विवेदी युग में अपनी खड़ी बोली स्वरूप को ग्रहण किया जो आज भी हमारे समाज में अपनी बुनियादों को मजबूती से पकड़कर आगे बढ़ रही है।

हिंदी हमारे पारम्‍परिक ज्ञान, प्राचीन सभ्‍यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु भी है। धार्मिक दृष्टिकोण से इस भाषा ने सदैव हमारी मूलभूत संस्कृति तथा मान्यताओं को संरक्षित रखने का प्रयास किया। हिंदी साहित्य जगत में गोस्वामी तुलसीदास जी, रहीमदास, आदि कुछ ऐसे विशिष्ट व्यक्तित्व रहें जिन्होंने भारत की प्राचीनतम इतिहास एवं धर्म से संबंधित मान्यताओं को लोगों तक बिना किसी संकोच के पहुंचाने का प्रयास किया। गोस्वामी जी रामाधारा काव्यों का सृजन कर, भक्ति परंपरा में क्रांति की नई लहर उतपन्न की। धर्म तथा संस्कृति के संवाहक के रुप में यहां भी हिंदी ने एक उत्कृष्ट भूमिका निभाई।

हिंदी दिवस विशेष: धूमिल अस्तित्व को समेटने की आवश्यकता और उपाय

मगर, इतिहास निश्चित ही इस तथ्य पर आधारित नहीं कि आने वाले समय में भी सब कुशल हो। हिंदी का एक भाषा के रुप में जो उत्थान हुआ, उसे समाप्त करने में भी कोई क़मी नहीं की गई। आर्य समाज में पाश्चात्य संस्कृति के आगमन ने ही इसकी नींव रख दी थी। पराधीनता के कारण हमने जो आर्थिक और सामाजिक दंश झेला, उसने हिंदी के अस्तित्व पर भी एक गहरा प्रभाव डाला। अंग्रेजी भाषा की लोकप्रियता ने मानो किसी दीमक की भांति हिंदी की जड़ों को धीरे-धीरे समाप्त करना शुरु कर दिया। इन सबका एक दुखद परिणाम तब सामने आया जब स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीयों की सभा ने हिंदी को राष्ट्रभाषा का स्थान देने के विचार का विरोध किया।

भलें ही विरोधियों की संख्या मुट्ठी भर रही हो, मगर किसी भाषा के अस्तित्व के लिए इससे दुखद क्या हो सकता है? जिस समाज में इस भाषा ने अपना स्वरूप ग्रहण किया और बदले में विश्व स्तर पर भारतीयों की पहचान बनकर उभरी (हिंदी दिवस विशेष), उस भाषा को उसी देश के लोगों द्वारा बहिष्कृत किया जाना निश्चित रुप से भाषा के साथ अन्याय है।

सँभवत: हमें ऐसा लगता होगा कि हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिल जाना एक उचित विकल्प रहा हो, मगर आज भी परदेशी भाषा के समक्ष हमने अपनी मूल भाषा का जो हश्र किया है, वो अत्यंत दुखदायक है। हिंदी भाषा को पुनः स्थापित करने हेतु भारत सरकार द्वारा निश्चित तौर पर अब गंभीर रुप से प्रयास किए जा रहे हैं, समय-समय पर कार्यक्रमों का आयोजन (हिंदी दिवस विशेष), हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार, आदि ने इसमें एक अहम भूमिका भी निभाई है।

लेकिन यह पर्याप्त नहीं है हिंदी के उस सम्मान हेतु जिसकी परिकल्पना भारतवर्ष करता है। आज सोशल मीडिया भी बड़े माध्यम के रूप में उभरकर सामने आई है जहाँ हिंदी को उसका उचित स्थान प्रदान करने हेतु निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। आने वाले समय में हिंदी की लोकप्रियता में उत्थान होना निहित है और यदि प्रत्येक भारतीय इस संकल्प का निष्ठा से पालन करे तो वह दिन अधिक दूर नहीं जब हिंदी को एक भाषा के रुप में अपनी खोई हुई गरिमा पुनः प्राप्त होगी।

हिंदी दिवस विशेष पर लिखे गए इस लेख की लेखिका द राइटर्स कम्युनिटी की सह संस्थापिका शान्या दास हैं।

Ankit Dev Arpan

Author Since: June 11, 2021

Ankit Dev Arpan is the Founder of the Writers Community. He is an author, writer, youth politician, political analyst, social activist, and visionary personality.