
मैं लेखक नहीं हूँ!
सब लिखते हैं, शुद्ध लिखते हैं, सरल लिखते हैं और कई विषयों पर लिखते हैं। लेकिन लेखक होना आसान नहीं। सभी लेखक नहीं होते। मैं कभी पूर्णता को लेखन नहीं मानता, अशुद्धियों के आधार पर लेखन को गलत नहीं ठहराता। शंभू को संभु, अखिलेश्वर को अखिलेस्वर, महेश को महेस लिखने वाले को मैं गलत बस इसलिए नहीं कहता क्योंकि महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने जब अवधि में मानस की रचना की तो शायद ही हिंदी शब्दों के शुद्ध रूप को लिखा। पाठन को सरल बनाने के उद्देश्य से महाकवि ने याज्ञवल्क्य मुनि का नाम तक गलत कर दिया। इसलिए मेरे लिए लेखन का आधार बस शब्दों की शुद्धता और वाक्यों की पूर्णता नहीं है। मैं लेखक को संतुलित देखना चाहता हूँ, लेखक को कल्पनाशील देखना चाहता हूँ, लेखक के शब्दों के अर्थों के विभिन्न आयामों में विभिन्न अर्थों को देखना चाहता हूँ।
आजू मिथिला नगरिया निहाल सखिया, चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखिया
मैं इन पंक्तियों में छिपे उस अर्थ को देखता हूँ जिसको सब नहीं देखते, आम तौर पर इसे बड़े भाई राम से जोड़ कर देखा जाता है, लेकिन मेरा मानना है कि कवि मन ने कहा कि चारों ही दूल्हों में बड़ा कमाल है। केवल बड़का दूल्हा ही कमाल नहीं है।
लेखक कौन है? वह एक चित्रकार ही तो है जो अपने शब्दों के चित्र से आपको दुखी, खुश, चंचल या अशांत कर देता है। केवल किताबें लिखने वाला ही लेखक क्यों होगा? कविताएँ लिखना लेखक या कवि शब्द को पूरा कैसे कर सकता है? वो लड़का जो मेरे साथ ही पढ़ता है, मेरे जीतना ही पढता है, मुझसे ज्यादा अंक कैसे पा लेता है? उसकी तो कोई किताब भी नहीं छपी! वह भी तो एक लेखक ही होगा, जो पढ़ाई जाने वाली तमाम बातों को पिरो देता होगा ऐसे शब्दों में जिसमें पिरोना हम और अप नहीं जानते और वो विवश कर देता है उस परीक्षक को ज्यादा अंक देने की खातिर। वह क्या लिखता होगा? महज वहीं बातें जिसके दूसरे रूप को हमने भी समाहित कर दिया है उन 32 पेजों में, लेकिन उसका संतुलन ही तो था जिसने उसे सबसे अलग बनाया।
लेकिन वह लेखक क्यों नहीं बन पाता, क्योंकि वह डरता है, उस समाज से जो उसे एक टॉपर होने के बाद लेखक के रूप में स्वीकार कर पाएगा या नहीं? वह डरता है अपनी पहली लिखी हुई उस अभिव्यक्ति के छाप से जिसे लोगों द्वारा स्वीकार किया जाएगा या नहीं। वह डरता है अपने पिता के उस सपने से जो टूट जाएगा उसके इंजीनियर ना बनने के बाद और वो डरता है उस समाज से जहां लेखक होना कुछ भी ना होने जैसा है। उसे तो लेखन शुरु करने में भी डर लगता है, क्योंकि सच को पढ़ेगा कौन? स्वीकारेगा कौन? उसके झूठ लिखने की कीमत क्या होगी? उसे खरीदेगा कौन? अपना झूठ बेचकर जब वो शाम रोटियाँ खाएगा तो क्या उसका सच उन रोटियों को नकारेगा नहीं?
खैर कोई और है जो लिखता है, फिर मैं उसे लेखक क्यों नहीं मानता? कुछ लोग बस पैसों के लिए लिखते हैं, कुछ लोगों का शौक है कि मुझे लिखना है लेकिन उन्हें पता नहीं कि लिखा क्या है? तुकबंदी मिला कर वाह वाह पाने के लिए भी लिखने वाले हैं। कुछ बस उसी को लिखते हैं जिसका उन्हें निर्देश मिला है। वे बस ऐसे ही हैं जैसे किसी को कहा गया है सीधा जाना तो वो तालाबों को तैर रहा है और काँटों में पैर को रक्तरंजित कर रहा है। उसका विवेक अनुसरण मात्र कर रहा है। यह निर्णय नहीं कर पाने वाला व्यक्ति है मैं इसे लेखक क्यों कहूँगा? लेखक तो वह है जो अपने लेखन से समाज में ज्वाला लाए और तब कई लोगों के निर्णय बदल जाएँ।
राजा का गुणगान करने वाला तो बस चाकर है, वह सत्ता बदलने की काबिलियत भी नहीं रखता और वह कौन है जिसे हर सही को भी गलत कहना है? उसे अच्छाई दिखती तक नहीं वह कैसे लेखक बन सकता है?
सच को सच और झूठ को झूठ कहने का साहस नहीं है कैसे लेखक बन जाओगे? राजा ने गलत किया और तुम उस गलती पर पर्दा डालने के लिए के लिए लिख रहे हो, राजा ने किसी को पुरस्कार दिया और वो उसे जनता के पैसे का दुरुपयोग बता रहा है, दरअसल तुम दोनों ने ईमान बेच दी है। जाओ ईमान लाओ फिर खुद को लेखक कहना।
लेखन कार्य के लिए पैसे मिलेंगे में जितनी जल्दी हाथ उठाते हो यह कहते हुए कि हाँ मैं तो लिखता हूँ, मैं लिख लूँगा, इसके पहले यह जानो कि लिखना क्या है? तुमने आखिरी बार ऐसा कब लिखा था? क्या तुम वहीं लिख पाओगे जिसके लिए पैसे मिल रहे हैं? नहीं! फिर हाथ नीचे रखो, सीखो कैसे लिखना है, कितना लिखना है? राज्य की राजधानी की खूबसूरती बतानी है, जो राजा के जन्म के सदियों पूर्व से बनी और अब तक चली आ रही है इसमें बस राजा की सुंदरता मत बताओ, तुम्हें पैसे राजधानी की खूबियों को बताने के लिए मिल रहे हैं, राजा को खुश करने के लिए नहीं। पड़ोसी की बेटी गलत सुई लगने से मरी है, तुम बस उस डॉक्टर को इसलिए भगवान लिख रहे हो कि परसों तुम्हारी बेटी को वो सुई देगा। उस डॉक्टर को गलत बताने के लिए अपनी बेटी के मरने तक का इंतजार मत करो, लेखक बनो सच लिखो, संतुलित लिखो…….
और हाँ, ,, ,,, ,,,,, मैं लेखक नहीं हूँ!
इस लेख के लेखक अंकित देव अर्पण, राइटर्स कम्युनिटी के संस्थापक हैं।